II "कौलान्तक पीठ द्वारा-प्रिंट-इलेक्ट्रानिक मीडिया-और इंटरनेट मीडिया के लिए रिलीज" II
मीडिया के लिए प्रेस नोट-4 अक्टूबर 2010
आखिर खुल ही गया मौत की मनहूस पाण्डुलिपि का रहस्य
१)क्या मौत का कोई स्वाद होता है ?
२)क्या मौत का कोई रंग होता है ?
३)क्या कोई मौत का अनुभव जानता है ?
४)क्या मौत का दिन जाना जा सकता है ?
५)क्या मौत को टाला जा सकता है ?
कौलान्तक पीठ,हाउस नं०-408 वार्ड नं०-11,शास्त्रीनगर कुल्लू (हि०प्र०)
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला की सबसे बिबादास्पद पाण्डुलिपि को पढ़ने में आखिरकार सफलता मिल गई है....ये दावा हिमालय की सबसे बड़ी पीठ कौलान्तक पीठ के पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी ने किया है....गौरतलब है की कुल्लू की बंजार घाटी में एक "मौत की मनहूस पाण्डुलिपि"थी जो भोज पत्र पर लिखी गयी थी.....जिसके रचयिता महर्षि पुण्डरीक को माना जाता है.....इस ग्रन्थ का नाम है...."मृत्यु विचार".....इस ग्रन्थ में मृत्यु को प्रधान विषय रख कर इसकी रचना की गयी थी....ये दुर्लभ पाण्डुलिपि कई तांत्रिको के पास से हो कर गुजरी.....लेकिन दुर्भाग्य ये रहा की ये पाण्डुलिपि जहाँ जहाँ गयी.....वहां वहां उन लोगो की बीमारी अथवा दुर्घटना के कारण मौत होती रही....तो किसी के परिवार ही उजाड़ गए....इस कारण पाण्डुलिपि बदनाम हो गयी...बंजार क्षेत्र के ही एक बुजुर्ग
मानव की दो मुहीं मृत्यु को दर्शाता चित्र
चित्र में अकाल और सकाल मृत्यु सर्प बने हैं
के पास इस पाण्डुलिपि की एक प्रति प्राप्त हुई है.......माना जाता है की ब्रिटिश काल में कुल्लू क्षेत्र में लोग बहुत कम पढ़े लिखे थे.....लेकिन कुछ एक ब्राह्मण और ठाकुर ही थोडा बहुत अक्षर ज्ञान रखते थे.....सन 1835में इस अनोखी पाण्डुलिपि की 5 प्रतियां बनायीं गई थी....लिकिन वो भी वैसी ही मनहूस निकली....लोगो ने उन पांडुलिपियों को भी तांत्रिको के मरते ही उनके साथ जला डाला......लेकिन किसी तरह बंजार घाटी में एक बृद्ध के पास एक पांडुलिपि बची रह गयी...कुछ समय पूर्व उनका देहाबसान हो गया.....वे निसंतान ही थे व पत्नी काफी पहले ही स्वर्गवासी हो चुकी थी...उनके शरीर छोड़ते ही.....उस पाण्डुलिपि को भी आग में जलाया जा रहा था.....क्योंकि महायोगी जी पहले से जानते थे की उनके पास वो पाण्डुलिपि है...और लोग उस पाण्डुलिपि के साथ क्या करने वाले हैं....इसलिए तुरंत महायोगी कुछ योग्य शिष्यों सहित बंजार पहुंचे लेकिन तब तक पाण्डुलिपि को आग के हवाले कर दिया गया था.....लेकिन सौभाग्य बश पाण्डुलिपि पूरी जलाई न जा सकी....उसका कागज खाफी मोटा होने के कारण
ज्योतिषीय आधार पर मृत्यु की कुंडली
12 घरो में कौन सी मृत्यु होगी ये बताया गया है
पाण्डुलिपि के कुछ पन्ने काफी हद तक सुरक्षित ही रहे......कौलान्तक पीठ के पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज ने वो आधी जली हुई पांडुलिपि अपने अधिकार में ले ली....क्योंकि पाण्डुलिपि को मनहूस माना जाता है इस लिए महायोगी जी ने पांडुलिपि को हिमालय के जंगल में एक गुफा में छुपा कर सुरक्षित रक्ख लिया....और पाण्डुलिपि के कुछ फोटो खींच कर उनपर अनुसंधान शुरू कर दिया.....यहाँ पाण्डुलिपि वाले बुजुर्ग का नाम इस लिए नहीं दिया जा रहा की लोग उनके सम्बन्धियों को बुरी नजर से देखना शुरू कर देंगे....साथ ही हैरान कर देने वाली बात तो ये है की जिस बुजुर्ग के पास ये पांडुलिपि थी वो तो इसे पढ़ना जनता ही नहीं था....उनके सम्बन्धियों के बच्चे पाण्डुलिपि को खेल का सामान समझते थे.....क्योंकि ये लकड़ी के एक डब्बे में राखी गयी थी...बच्चों नें पाण्डुलिपि पर लगभग मिट चुके पीले रंग पर पेंसिल से पेंटिंग कर डाली.....जिससे पाण्डुलिपि को आंशिक नुक्सान पहुंचा है...मूल स्वरुप ख़राब सा लग रहा है......महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी के अनुसार ये पांडुलिपि बंजार घाटी की स्थानीय बोली में व कुछ संस्कृत शब्दों का मिश्रण कर तान्करी भाषा में लिखी गयी है....महायोगी जी ने बताया की पाण्डुलिपि में मृत्यु को ईश्वर के बराबर का बताया गया है......पाण्डुलिपि कहती है की किसी भी व्यक्ति या पदार्थ की आयु निश्चित तो नहीं है....लेकिन मौत का दिन स्थान बार और मृत्यु का तरीका जाना जा सकता है.....जिसके लिए ज्योतिष और तंत्र साधना का कुछ योगिक बिधान बताया गया है.....कुंडली के भावों के द्वारा मृत्यु को जानना.....तंत्र साधना द्वारा मौत को देखना.....मौत का पूर्वानुमान की बिधि आदि तत्व इसमें हैं...साथ ही अकाल मृत्यु और सकाळ मृत्यु यानि की पूरण मृत्यु के समय को तलने की बिधि भी इसमें बताई गयी है.....मौत के समय कैसा अनुभव होता है...मौत का स्वाद और सुगंध कैसी होती है ये भी बरणित किया गया है....मौत का अनुभव बच्चा पैदा करने के बाद का अनुभव जैसा और कई दिनों से रुके हुए मल को त्यागने के बाद के अनुभव जैसा...अमावस मैं चमकते दीप जैसा या बादलों से निकलते प्रकाश जैसा और हल्दी और कुमकुम के मिलेजुले रंग जैसा साथ ही बेहोशी जैसी गहरी नींद सा बताया गया है....
मृत्यु के समय कैसा अनुभव होता है चित्र
dमृत्यु को बहुत मीठा अनुभव बताया गया है
अकाल मृत्यु से बचाने के यन्त्र.....मन्त्र पूजा....बताई गयी है....इस संसार की आयु कितनी होगी.....चाँद तारो की उम्र कितनी है......दुनिया को मृत्यु ने कितना समाप्त कर दिया है जैसी रोचक तत्वों की जानकारी इसमें हैं.......कौलान्तक पीठाधीश्वर कहते है की......ये देख कर हैरानी होती है की मृत्यु और संसार के विषय को........मानव की मृत्यु जैसे विषयों को पूर्वजों ने कितनी गूढता से समझा है......इस पुस्तक में जीवन को आसमान में चमकने वाली बिजली जितना छोटा क्षणभंगुर बताया गया है......और इस मृत्यु को जीतने के लिए मनुष्य को उपाय करने की व ईश्वर की उपासना की सलाह दी गयी है......महायोगी इस पाण्डुलिपि को मनहूस नहीं मानते....उनहोंने लोगो से अपील भी की है की कृपया देश की अमूल्य धरोहरों को आग में न जलाया जाए....यदि आपके पास इस तरह के ग्रन्थ हों तो उन्हें कौलान्तक पीठ के हवाले कर दिया जाए......पाण्डुलिपि के अनुसार अभी सृष्टि बहुत ही नयी है....सृष्टि को रहस्यमय काले अदृशय सर्प के मुख से निकलता हुया दिखाया गया है......और वही सर्प अंत में सृष्टि को निगल जाता है.....पाण्डुलिपि के अनुसार सृष्टि में अनेको लोक हैं जिन्हें मृत्यु की काली अदृश्य सर्पिनी ही उगलती व निगलती है...
सृष्टि चक्र को दर्शाता चित्र दो आकृतियों सहित
ऋषि वशिष्ठ का जिक्र करता पाण्डुलिपि का पृष्ठ
अभी पृथ्वी को सर्पिनी ने सूर्या चन्द्र सहित 827 सुर्सोत पहले ही उगला है......एक सुर्सोत की आयु लगभग 98हजार वर्ष होती है तो अभी सूर्या चंद्रमा की आयु लगभग 8,10,46,000 वर्ष ही है.......हालाँकि महायोगी इस समय अवधि को अभी सटीक नहीं मान रहे.....क्योंकि कितने वर्षों का एक सुर्सोत होता है ये अभी भी ठीक ठीक मालूम नहीं हो सका है....महायोगी जी की गन्ना के अनुसार एक सुर्सोत की आयु 1 लाख 19 हजार साल ह्जोती है....लेकिन प्राचीन मान्यताएं सुर्सोत की आयु 98 हजार साल ही बताती हैं.....हमारी पृथ्वी के ऊपर 32 पृथ्वी मंडल बताये गए हैं......और नीचे 52 पृथ्वी मंडल बताये गए हैं.....जिन सबको काल की अदृशय सर्पिनी ने एक साथ ही उगला था....और इस पृथ्वी सूर्य चन्द्र को काल की ये अदृशय अनंत सर्पिनी 27291सुर्सोत पूरे होने पर निगल लेगी......लेकिन मानव इस समय अवधि से पहले ही मृत्यु के मुख में चले जायेंगे...सृष्टि की ऐसी गणना अनूठी है.....वहीँ दूसरी और कलियुग में मानव को कृत्रिम भ्रमजाल वाला जीवन जीते हुए दिखया गया है....ऐसा जीवन जो भगवन ने नहीं बनाया.....वो मानव देत्यों द्वारा रचित होगा....जिसकी कैद में मानव स्वयं को भूल जाएगा की वास्तब में जीवन क्या है.....ये मानव के अंत की शुरुआत होगी......इस पाण्डुलिपि को ऋषि पुण्डरीक द्वारा रचा गया है....इसमें ऋषि वशिष्ठ,विशवामित्र,नागो का भी वर्णन है......हालाँकि ये प्रारंभिक जानकारियाँ ही हैं....पर शायद ज्यादा पता भी नहीं चल पायेगा....क्योंकि पाण्डुलिपि पूरी नहीं है....फिलहाल पाण्डुलिपि को खंगाला जा रहा है.......ताकि इसमें छिपे सारे रहस्य सामने निकल कर आ सकें.....फिलहाल पाण्डुलिपि सुरक्षित हाथो में पहुँच गयी है.....सनद रहे की महायोगी को पांडुलिपियों से जुड़े शोध कार्यों के कारण जाना जाता है.....देश के प्रमुख समाचार पत्रों में महायोगी जी के अनेक शोधों की जानकारियाँ छप चुकी हैं...और देश के कई बड़े नामी टीवी चेनलो पर महायोगी जी के कार्यक्रम लगातार प्रसारित होते रहते हैं.....